संस्मरण: रागिनी उपाध्याय गरेला

लखनऊ कला महाविद्यालय के गौरवशाली इतिहास का एक हस्ताक्षर, समाज से संम्वाद करती एक कलाकत्री
Prof. Jai Krishna Agarwal
लखनऊ के कला महाविद्यालय में सन् 1982 बैच की एक अत्यंत कर्मठ और संवेदनशील छात्रा रागिनी उपाध्याय उन छात्राओं में रहीं थीं जिसने अपने जीवन के संघर्ष को सदैव एक चुनौती की तरह लिया। नेपाल में जन्मीं रागिनी के पिता जब उन्हें लखनऊ कला महाविद्यालय में छोड़ कर गए तो एक नए और अपरिचित वातावरण में अनायास वह मेरे निकट आ गई। उनदिनों प्रिप्रेट्री का क्लास टीचर मैं हुआ करता था और प्रिंटमेकिंग का अध्यापक भी। रागिनी ने प्रिंटमेकिंग का विकल्प चुना ,वह भी एक कारण उसका मेरे निकट आने का रहा था। उसने सदैव ही मुझे अपने एक अग्रज की तरह माना जिस वजह से वह अपनी व्यक्तिगत समस्याएं मुझसे साझा करती रहती थी।
मुझे स्मरण है जब वह पहले दिन मेरी कक्षा में आई तो मैने उसे एक लीनोलियम का टुकड़ा दिया। वह थोड़ी देर तक यूं ही बैठी रही फिर बोली सर क्या बनाएं। मैने कहा रागिनी तुम नैपाल को मिस कर रही हो है न, अब आंखे बंद करो और देखो तुम्हारे सामने क्या आता है। उसने बताया कि उसके सामने काठमांडू के बौद्धनाथ स्तूप के ऊपर बनी दो बड़ी बड़ी आंखें आरही हैं। मैं स्वयं उसके बारे में नहीं जानता था,फिर भी मैने कहा कि बस उसी से शुरू करदो। उसी दिन मैने निगेटिवे और पाजिटिव स्पेस के बारे में भी छात्रों को बताया था। फिर क्या था पैहले ही कार्य में उसकी प्रतिभा देखकर मैं आश्चर्यचकित रह गया।उसके बाद रागिनी को कुछ पूछना नहीं पड़ा, उसके सामने नैपाल का प्राकृतिक सौन्दर्य और वहां की विशाल सास्कृतिक विरासत जो थी। धीरे-धीरे उसने प्रतीकों की अपनी एक अलग दुनियां रचनी शुरू कर दी।
रागिनी ने लखनऊ कला महाविद्यालय से अपना प्रशिक्षण पूर्ण कर कुछ वर्ष दिल्ली के गढ़ी स्टूडियोज़ में एक स्वतंत्र कलाकार के रूप में कार्य किया। बाद में नेपाल लौटकर अपने सृजन में पूरी तल्लीनता से रम गई। एक कलाकत्री होने के साथ लोकोपकार की भावना ने उसे व्यापक स्तर पर समाज से जोड़ दिया। लगभग विश्व भर का भ्रमण कर चुकी रागिनी आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी महत्वपूर्ण पहचान बनाकर भी अपनी अकेली पुत्री के अकस्मात देहावसान के बाद बहुत अकेलापन महसूस कर रहीं है। इस अवसाद ने उनके अंदर के कलाकार को एक प्रकार से उद्देलित कर दिया है और अब वह पौराणिक प्रतीकों से अलग सामाजिक विषयों पर विवेचनात्मक अभिव्यक्ति कर रही हैं साथ ही अपनी पुत्री शिवाता की स्मृति में एक फाउंडेशन की स्थापना कर महिला सशक्तिकरण और पिछड़े वर्ग की बालिकाओं के उन्नयन और शिक्षा आदि के प्रति कृतसंकल्प हैं।
मैरे शैक्षणिक कार्य काल में अनेक प्रतिभाशाली छात्र मेरे सम्पर्क में आये और कुछ तो एक पारिवारिक सदस्य की तरह मुझसे जुड़ गये थे। रागिनी भी उनमें से एक थी जिसे मैने सदैव अपने परिवार का हिस्सा ही माना…
संलग्न चित्र – छात्रा रागिनी 1982, सेल्फ पोर्ट्रेट, कलर लीनोकटस् कक्षा कार्य और बाद में बनाए गये चित्र ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *