प्रो. जयकृष्ण अग्रवाल जी उन वरिष्ठ कलाकारों में से हैं, जो लगभग नियमित तौर पर सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं। उनके लेखन का दायरा विस्तृत कहा जा सकता है। फोटोग्राफी, बागवानी जैसे विषयों से लेकर कला की दुनिया से जुड़े अनुभवों एवं संस्मरणों को सार्वजानिक तौर पर वे साझा करते रहते हैं। इस आलेख में प्रस्तुत है अपने प्राध्यापकीय जीवन से जुड़ा उनका एक संमरण …
कला महाविद्यालय,लखनऊ -1985 बैच के छात्र संदीप भाटिया का एप्लाइड आर्ट पाठ्यक्रम में प्रवेश एक विचित्र संयोग रहा था। एक छात्र के रूप में उससे मेरा सम्पर्क परोक्ष रूप से ही रहा। प्रीप्रेट्री के दो वर्ष ही प्रिंट मेकिंग की प्रारम्भिक जानकारी वह प्राप्त कर सका किन्तु इस बीच एक बात स्पष्ट हो गई कि पाठ्यक्रम का चुनाव करने में कहीं न कहीं उससे भूल हो गई थी। चित्रकला विशेषरूप से प्रिंट मेकिंग में बढ़ती उसकी रुचि उसे एक दूसरी दिशा में ही ले जा रही थी। वास्तव में सभी पाठ्यक्रमों की सम्मिलित प्रीप्रेट्री के उपरांत ही छात्र को चयन की सुविधा होनी चाहिये थी किन्तु किन्हीं कारणों से लखनऊ के कला महाविद्यालय में पाठ्यक्रम का चयन प्रवेश के समय ही करना होता था। संदीप को इसका दुष्परिणाम भोगना पड़ता। एप्लाइड आर्ट का पाठ्यक्रम पूर्ण करने के उपरांत वह अपनी ऐच्छिक राह पर चल पड़ा। एम. एस. यूनिवर्सिटी वड़ोदरा से प्रिंटमेकिंग में मास्टर्स डिग्री प्राप्त करने के उपरांत ही वह अपने को एक सृजनशील कलाकार के रूप में स्थापित कर सका।
एक अत्यंत सहज और संवेदनशील छात्र के अतिरिक्त संदीप को मैंने एक अच्छे साथी के रूप में भी देखा था।उसके साथ मैने गढ़ी स्टूडियो,नई दिल्ली में अमेरिकी प्रिंटमेकर पाॅल लिगंरिग और उदयपुर में चार्ल्स स्ट्रो की लीथोयोग्राफी वर्कशाप में भागीदारी की थी। वास्तव में कभी अपने छात्र रहे युवा कलाकार के साथ बराबरी के स्तर पर कार्य करने के उस सुखद अनुभव का आज भी स्मरण करता हूं। आज संदीप अपने अध्यापन कार्य के दायित्वों की व्यस्तताओं से अपने सृजन को पूरी तरह से विस्तार नहीं दे पा रहा हैं किन्तु मुझे विश्वास है कि उनके अंदर संचित सृजनात्मक ऊर्जा अवसर मिलते ही प्रस्फुटित होगी।
आज अनायास उस यात्रा का स्मरण हो आया जब संदीप, गीता दास और मैं लखनऊ मेल से दिल्ली जा रहे थे और मुझसे एक वर्ष वरिष्ठ रहे लखनऊ कला महाविद्यालय के पूर्व छात्र फिल्ममेकर भीम सेन भी उसी कम्पार्टमेंट में हमारे सहयात्री थे। मैने जब उन्हें इन दोनों युवा कलाकारों से मिलवाया तो उनकी प्रसन्नता हमारी नींद को ही हर ले गई। सारे समय भीमसेन अपने कालेज के दिनों की यादें ताज़ा करते रहे। आज मै भी अपनी स्मृतियाँ को साझा करते हुए अत्यंत सुखद अनुभव कर रहा हूं; विशेष रूप से उन छात्रों से जुड़ी स्मृतियाँ को जो परोक्षरूप से ही मुझसे जुड़े थे किन्तु आज उन्हें भी मैं अपनी जिन्दगी के अहम हिस्से के रूप में ही देख रहा हूं …