जैविक से यांत्रिक के बीच सृजनात्मक सामंजस्य: डाक्टर शोभित चावला

Prof. Jaikrishna Agarwal
कितना विचित्र लगता है यदि किसी सामान्य व्यक्ति से कहा जाए कि क्या तुम्हें दीखता नहीं है, किन्तु यह सच है अक्सर लोग बहुत कुछ अनदेखा कर देते हैं। एक कलाकार की दृष्टि आम लोगों से कुछ अधिक ही देखती है। सम्भवतः यही एक कारण दृश्य कलाओं की उत्पत्ति का हो सकता है। अब यदि आप आंखों के चिकित्सक हैं तो देखने की समस्त प्रक्रिया से भी परिचित है। लोगों की क्षीण होती देखने की क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते हैं। स्वाभाविक है, स्वयं उनकी देखने की क्षमता भी असामान्य ही होगी और इस बात को सिद्ध कर डाला है लखनऊ शहर के जानेमाने आंखों के डाक्टर शोभित चावला ने वह अत्यंत व्यस्त दिनचर्या के उपरांत भी अपनी कलात्मक अभिरुचियों के लिये समय निकाल ही लेते हैं।
शोभित अक्सर कान्फ्रेस, सेमिनार आदि में भाग लेने देश विदेश का भ्रमण करते रहते हैं। वैसे भी पर्यटन के शौकीन हैं। जब भी समय मिलता है किसी रमणीक स्थल पर अपने फोटोग्राफिक किट के साथ निकल पड़ते है। उनके लिये कैमरा बस एक मैकेनिकल आंख ही तो है बिलकुल जैविक आंख की तरह। एक प्रकार से दोनों की संरचना में भी बड़ी समानता होती है। शोभित इन दोनों आंखों में बड़ी कुशलता से सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता रखते है जो उनके लिये गये फोटोग्राफ्स में स्पष्ट झलकता है। पिछले कई वर्षों से मैं उनके फोटोग्राफ्स देखता रहा हूं। आमतौर से वह उनके यात्रा वृत्तांत के आकार रूप ही होते हैं किन्तु जिस प्रकार वह 360 डिग्री के पैनोरमिक व्यू में अपने विषयानुसार क्राॅप फैक्टर निर्धारित करते हैं वह कहीं न कहीं उनकी विषय के प्रति संवेदनशीलता का परिचायक होता है।
आमतौर से किसी कलाकृति के सृजन के लिये कला के मूल तत्वों को जानना और उनके आपस में सामंजस्य स्थापित करने के लिये प्रशिक्षण आवश्यक होता है। शोभित ने बिना किसी प्रशिक्षण के स्वयं ही सतत् प्रयास से अपने सृजन को निखारा है जो निसंदेह उन्हें एक मजे हुए छायाकार की श्रेणी में विशिष्ट पहचान देता है…

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