जय कृष्ण अग्रवाल सर की पहचान एक कलाविद, भूतपूर्व प्राचार्य, छायाकार एवं देश के शुरुआती और शीर्षस्थ प्रिंट मेकर वाली है। किन्तु जितनी बार भी उनसे मिला, मुझे वे इन सबसे इतर एक अभिभावक के रूप में नज़र आये, समकालीन कला के किसी भी अध्याय पर जब चर्चा की नौबत आयी तो उनकी स्पष्ट राय सामने आयी। ललित कला अकादमी, नयी दिल्ली की वर्तमान दशा-दिशा से हम सभी परिचित हैं। यहाँ प्रस्तुत है सत्तर के दशक की वह घटना जब कलाकारों के एक समूह ने जे. स्वामीनाथन के नेतृत्व में अकादमी के बायकॉट का अभियान चलाया था….
♦जय कृष्ण अग्रवाल
भारतीय कला परिदृश्य की वर्तमान स्थिति देखकर आज अनायास कलाकार जे.स्वामीनाथन का स्मरण हो आया। सन् 1964 में अपने एक पत्रकार मित्र नजमुल हसन के माध्यम से स्वामीनाथन जी से परिचय हुआ था। वह एक ऐसा व्यक्तित्व था जिससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता था। मेरा प्रभावित होना भी स्वाभाविक था। बस फिर क्या गुरु की शागिर्दी कर ली। इसके बाद अकादमी बायकॉट कैम्पेन में भी मेरी सक्रिय भागीदारी रही।

वह दिन थे जब मैंने दिल्ली के कलाजगत में प्रवेश ही किया था। धीरे-धीरे पहचान बन रही थी। इसी बीच ललित कला अकादमी से अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भागीदारी के लिये मेरा चयन किया गया। मेरे लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भागीदारी का पहला अवसर था। बायकाॅटर होने के कारण मैं धर्म संकट में पड़ गया। आखिरकार मैने स्वामी से ही परामर्श करने का निर्णय लिया। स्वामी मेरी स्थिति समझ रहे थे। उनके पास उस समय संतोष जी और शान्ति भाई भी बैठे थे। सभी ने एकमत से गहरी चिंता व्यक्त की कि बायकॉट कैम्पेन अपनी जगह है किन्तु हम एक उभरते हुए कलाकार को कैसे रोक सकते हैं। सब आपस में एक दूसरे की तरफ देख रहे थे। अंत में स्वामी जी ने चुप्पी तोड़ी और मेरी तरफ बिना मेरी आंखों में देखे कहा जय बायकॉट कैम्पेन से तुम स्वेच्छा से जुड़े हो यहां भी अपने ही विवेक से निर्णय लो। हमारे लिये तुम हर स्थिति में स्वीकार्य रहोगे। बस क्या था, मैंने अकादमी के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। यह शायद स्वामी के सानिध्य का ही असर था कि मुझे उस समय इस विशेष अवसर को हाथ से निकल जाने का जरा भी दुख नहीं हुआ। आज स्वामी हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनके साथ बिताये क्षणों की अनेक स्मृतियां हैं जो आज भी उन क्षणों को जीवंत कर देती हैं…
अकादमी बायकॉट कैम्पेन का प्रतीक मैडल आज भी मेरे संग्रह में सुरक्षित है और उन दिनों की याद दिलाता है जब मेरी स्मृति में कलाकारों ने एकजुट होकर एक बदलाव के लिये संघर्ष किया था।