अंकिता के बहाने-विद्यार्थियों के लिए….

चित्रकार डॉ. कृष्णा महावर ने अपनी कला शिक्षा में एम.ए की डिग्री वर्ष 2000 में एम. डी. एस. यूनिवर्सिटी, अजमेर से स्वर्ण पदक के साथ और वर्ष 2012 में पी.एच.डी. की उपाधि राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से प्राप्त कर अपनी कला यात्रा आरंभ की। वे पिछले 10 वर्षों से ललित कला संकाय, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर में अध्यापन का कार्य कर रही हैं। पिछले दिनों अपने फेसबुक पोस्ट पर कृष्णा ने यह टिप्पणी शेयर की थी। पढ़ने के बाद मुझे ऐसा लगा कि किसी कलाकार के लिए सिर्फ इतना ही मायने नहीं रखता कि अपने कलाकर्म के प्रति वह कितना समर्पित है। एक कलाकार अपने इर्द-गिर्द के बच्चों या छात्रों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका भी बखूबी निभा सकता है। यह बात कृष्णा महावर के इस पोस्ट से स्पष्ट हो रही थी।

दूसरी महत्वपूर्ण बात इस पोस्ट में यह नज़र आई कि अधिकांश कलाकार अपने सोशल मीडिया का उपयोग अपनी प्रदर्शनियों या कलाकृतियों के प्रचार के लिए ही करते हैं। जिसे गलत तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन कई बार यह एकालाप सा लगने लगता है। ऐसे में अगर कोई कलाकार किसी दूसरे की उपलब्धियों को रेखांकित करे तो कुछ अलग सा अहसास होता है।

-मॉडरेटर

Dr. Krishna Mahawar with her artwork

अंकिता कोटा में जब नौवीं कक्षा में पढ़ती थी तब पहली बार मेरे पास आई थी। दो चोटी बनाये सीधी सादी सी लेकिन मन मे कुछ कर गुजरने, बड़ी उड़ान भरने के सपने लिए हुए। पेंटिंग का जुनून। इसी जुनून को उसने अपने दम पर पूरा भी किया। पटना, बिहार के एक आर्थिक दृष्टि से कमजोर परिवार से आई एक लड़की जो आज आईआईएम में जॉब करने के साथ अपना एनआईडी में अंतिम सेमेस्टर की पढाई भी कर रही है। इससे पूर्व उसने एमएसयूं , बडौदा से पेंटिंग में बी.एफ.ए. भी किया। अंकिता आज स्वयं के लिए एक स्वतंत्र आत्मनिर्भर जीवन जी रही है। भारत जैसे देश मे लड़की होते हुए भी बहुत कम उम्र से ही अंकिता ने शांतिनिकेतन, मुम्बई और अन्य शहरों में अकेले ही यात्राएं कर स्वयं के उत्कृष्ट भविष्य को सुनिश्चित करने के प्रयास आरंभ कर दिए थे। प्रत्येक प्रवेश परीक्षा में टॉप पर रहती और पूरी पढ़ाई संस्थान द्वारा प्रायोजित की जाती। हमेशा कुछ नया सीखना ही उसका लक्ष्य रहता है। इसी जज्बे ने उसे पंख दिए और उड़ान भरने के सपने भी। आज अंकिता जो भी है स्वयं अपने दम पर है। मेरी अहमदाबाद यात्रा की सहयोगी और गाइड रही। पूरे दिन घूमने पर मेरे पैरो में दर्द हो रहा था तो रात को उसके द्वारा मेरे पैर दबाते उसने मुझे भावुक कर दिया। उसके निस्वार्थ प्रेम ने ही मुझे ये लेख लिखने की प्रेरणा दी है।

Ankita

विद्यर्थियों, स्वयं पर विश्वास हो और मेहनत तथा इच्छाशक्ति हो तो सफलता अवश्य मिलती है। शिक्षा प्राप्ति मात्र किसी संस्थान पर निर्भर नही करती। बल्कि स्वयं की जिज्ञासाओं और इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। यह प्रवाह शिक्षक से विद्यार्थियों की ओर नही बल्कि विद्यार्थियों से शिक्षक की और प्रवाहित होता है। क्योंकि प्रश्नों की उत्पत्ति से ही समाधान प्राप्ति की यात्रा आरम्भ होती है। अतः मेरा आग्रह सदैव विद्यार्थी के साथ यही होता है कि प्रश्नों, जिज्ञासाओं को अपने भीतर जन्मने दे; फिर उनके समाधान की ओर प्रयास करते हुए अलग अलग प्रक्रियाओं से गुजरें। ये प्रक्रियाएं पुस्तकीय अध्ययन से आरंभ होती हुई ,… फील्ड स्टडी, वार्ताएं, वरिष्ठों से बातचीत, यात्राएं, डॉक्यूमेंट्री, फिल्में, नोट्स आदि के पश्चात, फिर भी यदि कुछ जिज्ञासा बची रहे तो अंत मे शिक्षक के पास पहुंचे और उनके सानिध्य में प्रक्रिया को आगे बढ़ाए। दरअसल ज्ञान प्राप्ति बेहद निजी प्रक्रिया होती है। उसे निभाना भी निजी स्तर पर ही होता है। आज गुरु शिष्य परंपरा नही है। जंहा शिष्य को चौबीस घंटो का साथ मिलता था। और वह अपने परिवार व अन्य जिम्मेदारीयो से दूर केवल गुरु के पास शिक्षार्जन करने के लिए आ जाया करता था।

अब दृश्य बिल्कुल अलग है। कैसे एक जिज्ञासु विद्यार्थी शिक्षार्जन करे …जबकि सभी और पाठ्यक्रमो और डिग्रीयों के जाल में उलझे, नंबरों के बोझ तले बेचारे विद्यार्थीयो के लिए अक्सर दिशाहीन हो जाने का खतरा रहता हैं। नौकरी लेना ही पहला व आखरी लक्ष्य रहता है। और इसलिए सूचनाओं को ही ज्ञान का पर्याय मान लिया जाता है। एक विवेकशील मन इस अंतर को स्पष्टता के साथ महसूस कर सकता है। अतः आवश्यक है कि ज्ञान प्रवाह हो, वैचारिक चिंतन हो। यह डिग्रीनुमा कागज समाज के किसी काम नही आता। मात्र स्वयं को इस खुशफहमी में रखने के कि हम ऊंचे पदों पर सुशोभित है और हमारा समाज में उच्च स्थान और भूमिका है। बल्कि मूल स्थिति में वास्तविक ज्ञान प्रवाह हमे शांति, ठहराव, आत्मिक सुख और संतुष्टि की और तत्पर करता है।

विद्यार्थियों… विवेक विकसित करो, स्वयं को टटोलो, स्वयं के अंदर प्रवेश करो , सोचो, अपनी आवश्यकताओं को समझो, प्राथमिकताओ को तय करो, संस्कारी बनो, अच्छे – बुरे के अंतर को समझो और एक संवेदनशील, समझदार इंसान के रूप में अपनी एक सशक्त भूमिका के साथ समाज के विकास में अपना योगदान दो।

-डॉ. कृष्णा महावर

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