पटना में छापा कला की अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी : अंतिम भाग

अपने निर्माण के बाद से बिहार म्यूजियम,पटना ने अपनी कला विषयक गतिविधियों के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि उसका लक्ष्य वैश्विक कला गतिविधियों से बिहार के कला प्रेमियों को रूबरू कराना भी है। अपनी स्थानीय गतिविधियों के साथ-साथ। वर्ष 2023 की बात करें तो द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय म्यूजियम बिनाले और उसके बाद इंटरनेशनल प्रिंट मेकिंग एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत आयोजित छापा कला की अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी का आयोजन इस दावे की पुष्टि करता है। वरिष्ठ कला समीक्षक अनीस अंकुर की कलम से यहाँ पेश है इस छापा कला प्रदर्शनी पर एक विस्तृत रिपोर्ट। वेबपेज की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए हम इसे धारावाहिक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, हाज़िर है अंतिम भाग।

Anish Ankur

2016 : ब्रेकिंग न्यूज

इंटरनेशनल प्रिंट एक्सचेंज प्रोग्राम के वर्ष का थीम था ‘ब्रेकिंग न्यूज’। इस थीम पर भाग लेने कलाकारों ने अखबारों के पन्नों पर अपनी कृति को चित्रित किया। हर छापा कलाकार ने अपने-अपने मुल्क से निकलने वाले अखबार में थीम के अनुकूल छापाचित्र बनाया है। अखबार में अपने समय व समाज की महत्वपूर्ण खबरों का क्या महत्व रहा है इसे ‘ब्रेकिंग न्यूज ‘ने चाक्षुष स्तर पर समझने की कोशिश की है। रोमानिया के एंड्रियाना ल्यूसासिउ ने अखबार के खेल पेज पर हाथ को काले रंग से चित्रित किया है। किस तरह खबरों को तोड़ा- मरोड़ा सकता है इसे सामने लाया गया है।

इटली के अल्बेर्तो बालेत्ती ने ‘ला गजेता दी वेनिजिया’ पर एक मनुष्य व कुत्ते की खोपड़ी को चित्रित किया है। वेनिस शहर में आर्थिक केंद्रोें के प्रबंधकों के संबंध में खबर है। इन निरंकुश ताकतों के बारे में खबर दी गयी है। ये लोग खुद तो पृष्ठभूमि में रहा करते हैं पर आमलोगों की जिंदगी को राजनीतिक प्रतिनिधियों के मुकाबले को अधिक प्रभावित करते हैं। फलतः मनुष्य की स्थिति सड़क के अवारा कुत्तों सरीखी होती जाती है। कुछ-कुछ इस किस्म के भाव को पकड़ने की कोशिश नजर आती है।

ब्राजील के छापा कलाकार ने शराब पीकर कार अनियंत्रित ढ़ंग से ड्राइविंग के नुकसान के सवाल को उठाया है। सड़क पर दिशा बताने वाले तीर के निशान, लाल पंजा, कार का छायाचित्र आदि सड़क सुरक्षा के प्रश्न का विजुअल संकेतों में अभिव्यक्त करते हैं। इटली के बाबिसिया बारबारा फैलिनी ने अखबार पर एक बच्चे का छाया चित्र बनाया है जिसके दोनों हाथों में एक संदेश छिपा है ‘आर्ट सेव अस’ । पीले रंग से तारेनुमा एक आकृति भी बनाई गयी है। यह कृति हमें कला के महत्व से अवगत कराने के लिए बनायी गयी है।

भारत के चंद्रशेखर तांदेकार ने अमूमन अखबारों में पानी की कीमत के संबंध में प्रकाशित होने वाली खबरों से प्रेरित होकर प्रिंट बनाया है। हमारी नदियां सूख रहीं हैं, तालाब, पोखर में पानी नदारद होता जा रहा है। इस कृति में कम होते जा रहे पानी के स्रोतों पर चिंता व्यक्त की गयी है। इसके लिए अखबार पर काले रंग का उपयोग किया गया है।

अमेरिका के देबोरा ओबेन ने पृथ्वी पर प्राकृतिक तत्वों के ठीक बगल में मनुष्य निर्मित उन तत्वों को रखा है जिसका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन मसलों पर अखबार में लिखे गए आलेख को नीले रंग से पेंट कर टेक्स्ट को लगभग ढ़क दिया गया है तथा बच्चों के बनाए रेखांकन उस पर बना दिये गए हैं।

भारत के डिंपल चंदत ने टाइम्स ऑफ इंडिया के टाइम्स स्पोर्ट्स के पेज पर बनाए गए छापा चित्र से हर न्यूज को ब्रेकिंग न्यूज बना देने की गलत प्रवृत्ति की ओर ध्यान आकृष्ट करने किया है। मीडिया जैसा सशक्त माध्यम लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए ब्रेकिंग न्यूज की बात करता है। इससे आमलोग हर महत्वूपर्ण से वाकिफ रहते हैं पर हर न्यूज को ब्रेकिंग न्यूज बताना सही नहीं है।

इंग्लैंड के गीता और इगल (मोटिफ) ने अखबार की सुर्खियां हमारे वर्तमान जीवन में दखल देती है एक दिन बाद अतीत बन जाती है। जो कुछ भी हमारा जाना-पहचाना सा लगता है वह दूर व विचित्र होता नजर आता है। ग्लिच तकनीक का उपयोग कर एक अबूझ सा लगने वाला छापाचित्र बनाया गया है।

फ्रांस के हेलेने बाउतिस्ता ने वहां के प्रसिद्ध अखबार ‘ला मोंडे’ के पेज पर ऐसे पुराने अखबार बेचेने वाले को चित्रित किया है जो चिल्ला-चिल्ला कर यह काम करते थे। उन्होंने अखबार बेचने वाले को काले रंग से जबकि ब्रेकिंग शब्द को रोमन लिपि में लिखा हैं। अखबार बेचने वाले चार्ली चैप्लिन सरीखी वशेभूषा पहने है। ब्रेकिंग न्यूज पर सिर्फ ध्यान न दें बल्कि उन खबरों का ठीक से विश्लेषण कर अपनी राय कायम करें जो कि ‘ ला मोंडे’ अपने पाठकों के लिए करता है।

जर्मनी की कार्सटीन लिच्टब्लाउ ने अपने दश के अखबार पर काले रंग से मुखाकृति चित्रित किया है। इन चित्रित मुखाकृतियों के बीच में लड़की का चेहरा उभर कर आता है। जो पाठक का प्रतिनिधित्व करती दिखती है। स्थानीय जर्मन अखबारों में छपी तस्वीरों को वैश्विक खबरों के साथ मिलकर एक नया संदर्भ रचते हैं।

इटली के मार्को टेरेंटिन ने एक आदमी का धड़ और उसके उपर दो चेहरा बनाया है। दोनों की आंखें धुंधली और अंधेरी सी दिखती हैं। अपेक्षाकृत युवा से चेहरे पर झुर्रियां और दाग हैं तथा समय की मार के संकेत हैं। साथ ही उन आखों में संशय व हैरत का भाव है। यह छापाचित्र प्रभावी बन पड़ा है।

एस्पाना की मार्था कैस्तेलानोस ने अपनी बात को अभिव्यक्त करने के लिए कई रंगों का उपयोग किया है। पुरूष का चेहरा, हाथ, पत्ता , पत्ते में खड़े लोग चित्रित हैं। काला, हरा, ब्लू और हल्के लाल रंग का उपयोग किया है। अखबार के आधा हिस्सा काले रंग से ढ़का है। यह कृति कई रंगों का उपयोग करती है।

तुर्की के मेलीहाट तुजुन की कृति का नाम है केओटिक साईकिल’। दैनिक अखबार और उससे निकलने वाले ब्रेकिंग कही जाने वाली खबरें हमारे जीवन को प्रभावित करने वाली बड़ी-बड़ी घटनाओं को भी सामान्य जीवन के ढर्रे की चीज बना देते हैं। सरकारी बहसें हों या सड़क दुर्घटना ये सब चीजें नॉर्मल लगने लगती हैं जबकि उनका हमारे जीवन पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। यह एक प्रकार का कुचक्र ( विशस साईकिल) बन जाता है। छापाकलाकार ने इस कृति में काले रंग से बनी गोलाकार आकृति और हल्के नीले रंग का उपयोग किया गया है।

भारत के नागेश गाडेकर ने न्यूज प्रिंट पर पीले रंग का पेंट चढ़ाया है। उसमें काले रंग की लोमड़ी एपल की मोबाइल से सेल्फी ले रहा है। काले रंग की ही कंटीले तार के साथ-साथ मोबाइल टावर की छवि इस कृति में उभरती है। नागेश गाडेकर ने भारत में सेल्फी लेने की आम प्रवृत्ति में निहित जोखिम की ओर इशारा किया है। भारत में हम किसी भी स्थान पर अपनी कोई भी गतिविधि की सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर डाल देते हैं। आजकल की यह सामान्य सी क्रिया अपने अंदर कई किस्म के खतरे को भी छुपाए हुए है। इस कृति का रंगसंयोजन अलग ढ़ंग का है। पीले रंग का उपयोग इसे विशिष्ट बनाता है।

प्रीतम देउस्कर ने न्यूजप्रिंट पर प्लैटोग्राफी और काॅरेक्स कट तकनीक से अपने इलाके के रासायनिक कारखाने में हुए विस्फोट की विभीषका को प्रिंट पर रचा है। रिहायशी इलाकों के आसपास फैक्ट्री के लगने का क्या दुष्परिणाम होता है उसे चाक्षुष माध्यम में लाया गया है। कारखाने के मालिकों व पदाधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा आसपास रहने वालों को उठाना पड़ता है। शहरों की खराब प्लानिंग का नतीजा उन लोगों को झेलना पड़ता है जिनको उस पलानिंग की प्रक्रिया से कभी भी जोड़ा नहीं गया है। अपने स्थानीय अनुभव से एक बड़े सवाल के प्रति प्रभावी ढ़ंग से कैसे अपने सरोकार को व्यक्त किया जाता है इसे यह कृति अभिव्यक्त करती है।

भारत के ही प्रियोउम तालुकदार ने ‘ द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के न्यूज प्रिंट पर बाकी लोगों की तरह हल्के काले रंग से कुछ चित्रित किया है। अखबार के पेज पर बने चित्र और छापाचित्र से बनी छवियां दोनों मिलकर देखने वाले को एक अलहदा अनुभव की ओर ले जाता है। कलाकार द्वारा बनाए गए सोच व अनुभव से स्वतंत्र भी वह हो सकता है।

राजेश पुल्लरवार ने अंग्रेजी के संपादकीय पेज पर काले रंग के तीन उपर उठते गुब्बारे बीज की तरह नजर आते बनाए हैं। ये तीनों गुब्बारे कागज के बने राॅकेट से तीन कोनों से संबद्ध हैं। बच्चों की निरालीए कल्पनाशील व मस्ती भरी दुनिया मानो उसे हवा में उड़ाकर ले जाती है। काले रंग का गुब्बारा और पीला राॅकेट भवितव्य, आकांक्षा, हंसी के मिले- जुले भावों को प्रकट करता है। राजेश के काम में हल्का व्यंग्य अंर्तनिहित रहा करता है।

राखी कुमारी ने खेल के पन्ने पर लाल व हरे रंग से छापाचित्र बनाया है। एक गोले मेें दो स्त्रियां एक गतिमान अवस्था में एक दूसरे से होड़ लेने की मुद्रा में है मानों कोई खेल का हिस्सा हो। गोल के उपर एक किसी पेड़ पर डाली और उससे टंगे हरे पत्ते हैं। लाल व हरे का देखने में अच्छा लगता है। यह कृति स्त्री से सृजन की उत्पत्ति के दृरंगविन्यासष्टिकोण को सामने लाती है।

समीर राव ने कन्नड़ अखबार के एडिट पेज पर दिए गए विषय के तहत एक छोटी बच्ची और खुले मुंह वाले भौंचक्क सी आकृति निर्मित की है। कई हाथ उस मानवाकृति से निकले हुए हैं। इसे काले रंग से पेंट किया गया है। ब्रेकिंग न्यूज की दुनिया से किस प्रकार ताबड़तोड़ खबरों के नाम पर मानव जीवन में हाहाकार मचा रखा हैए किस प्रकार सामान्य चीजें विरूपित हो चुकी हैं और इन सबके बावजूद उसे कैसे उत्तेजक बना रखा जाये इन सबको प्रकट करने की केाशिश की गई है।

तनुजा राने ने बाॅम्बे टाइम्स के पेज पर अपने प्रिंट को बनाया है। एक दो मकड़े को आपस में गुत्थम-गुत्था दिखाया गया है। एक दूसरे को पराजित करने के होड़ में लगे ये दोनों मकड़े अपने मीडिया के हाल को बयां करते हैं। मीडिया संस्थानों की आपसी गलाकाट प्रतियोगिता का अहसास यह कृति कराती है। दोनों मकड़ों के लिए काले रंग का उपयोग किया गया है।

‘ब्रेकिंग न्यूज’ थीम के तहत दुनिया भर के कलाकारों ने प्रिंटमेकिंग में हिस्सा लिया। अधिकांश प्रिंटमेकर्स ने अपनी बात के लिए काले रंग का उपयोग किया गया है। काले के साथ-साथ लाल रंग भी उपयोग में लाए गए हैं। दूसरे रंग बहुत कम हैं। काले रंग का इतनी प्रमुखता से आना इस बात का द्योतक है कि ब्रेकिंग न्यूज’ परिघटना को सबों ने नकारात्मक रूप से ग्रहण किया है। सूचना प्राप्त करने के मौलिक अधिकार से कैसे यह महरूम कर रही है इसे विभिन्न तरीकों से प्रकट कर रही है। मीडिया की चमक-दमक भरी दुनिया के पीछे जो अंधेरा है उसे काला रंग सामने लाता है। कहीं-कहीं लाल जैसा तीखा रंग भी है जो मन के अंदर की तीव्र भावना को प्रकट करती है।

प्रदर्शनी में शामिल इन सबों ने अलग-अलग माध्यमों में काॅरपोरेट संचालित समकालीन मीडिया द्वारा परोसे गए इस अवधारणा को सृजनात्मक सतर पर चुनौती है। शासक वर्ग द्वारा फैलाई गई छवियों के बजाए इन कलाकारों ने आमलोगों के सरोकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है। ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर जो सनसनी, उत्तेजना और आभासी यथार्थ खड़ा करने की कोशिश की जा रही है उसके बरक्स आमलोगों के दुःख, हताशा और त्रासदी को अभिव्यक्त करने किया गया है। मनुष्यों का विरूपित चेहरा, जानवर, कीट आदि प्रतीकों का चयन अपने भावों के लिए किया गया है।

2017: होमलैंड

2017 में आयोजित छापाकला प्रदर्शनी का विषय था ‘ होमलैंड’ । इस प्रदर्शनी को खुद राजेश पुल्लरवार ने क्यूरेट किया था। इस वर्ष चौरासी कलाकारों के काम इस प्रदर्शनी में शामिल थे। इस विषय पर बनाए छापाचत्रों में कलाकारों ने पहचान एवं पर्यावरण के प्रति मुख्य चिंता व्यक्त की है।

भारत की कलाकार अदिति कुलकर्णी ने सेरीग्राफ में पैर के निशान बनाए हैं। इन पैरों के नीचे ही हमारी जड़ें हैं, मातृभूमि है। ये पैर अपने तलवे के नीचे की भूमि से वाकिफ हैं। यहां गूगल से लिए गए चित्र पर काले रंग से पैर का रेखांकन किया गया है। इस कृति का शीर्षक है ‘ द फुट ‘।

भारत के एक अन्य कलाकार अभिषेक चैरसिया ने सेरीग्राफ चिनकोले में बनायी कृति में एक आदमी बाघ की तरह खुद को पेंट किए स्टूल पर बैठा है। पुरानी मोटरसाईकिल, कार और पुराना कैमरा चित्रित है। नर्तक खुद को बाघ की तरह मेकअप कर आता है। आजकल बाघों की प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है। यही बाघ हिंदू परंपरा में दुर्गा की सवारी के रूप में भी आती है। यह कृति बाघों को उनके परिवेश से अलग कर उसे लगभग खत्म कर दिये जाने की अपनी चिंता से हमें अवगत कराता है।

रोमानिया के अद्रियान सैंदू ने ब्लू रंग से पहाड़ों का प्रिंट इचिंग से बनाया है। ‘होमलैंड’ विषय के बारे में उनकी समझ है कि पहाड़ मानवजाति की जन्मस्थली है। यही से जीवन का प्रारंभ हुआ है। ये पहाड़ शक्ति, शेल्टर, सुरक्षा और मजबूती के साथ-साथ हथियार के भी प्रतीक हैं।

अलेजांद्रा लेयेस द्वारा वुडकट में बने प्रिंट का नाम है पाचम्मा’। लैटिन अमेरिका में रहने वाले पुराने लोग इसे पाचम्मा कहा करते थे। इसका मतलब होता है मातृभूमि। चित्र देखने से एक प्राचीन अहसास उभरता है। इसमें स्याह-सफेद रंग के संयोजन से हाथ में मानो पेड़ की जड़ों को पकड़ रखा गया हो। अपनी मिट्टी, भूमि, जल और यहाँ रहने वाले लोगों का यानी अपनी मातृभूमि का ख्याल रखने के संदेश को पाचम्मा सामने लाती है। इसमें रंगों व रेखाओं से पुरखों के प्रति लगाव की भावना और अधिक तीव्र महसूस होती है। यह प्रिंट प्रेक्षक को ठहरने पर विवश करता है।

अंजली गोयल की सेरीग्राफ में बनी कृति ‘ द हाउस विच आई ग्रिउ अप ‘ मैरून और सफेद कलर से बना है। आंखों को सुकुन देने वाला रंग उपयोग में लाया गया है। एक स्त्री की आकृति को कुछ इस प्रकार चित्रित किया गया है जिससे उसके जीवन की यात्रा का अहसास होता है। विवाह के बाद वैसे तो स्त्री का घर बदल जाता है पर उसके बचपन की स्मृतियां, भावनाएं सब उसके अंदर बनी रहती है।

तुर्की के अरी अल्पेर्त की लीनोकट में बनी कृति का नाम है ‘ लव होल’। एक पुरूष व स्त्री आकृति एक घर के अंदर मौजूद होकर खिड़की से बाहर की ओर देख रहे हैं। ब्लैक एंड व्हाइट में बनी इस कृति में घर आशा व निराशा दोनों की जगह है। दुनिया में हम कहीं भी रहें घर हमें अपनी ओर खींचता है। इंग्लैंड की असमा हाशमी इचिंग पद्धति से बियांड ‘ डिकोटोमिज ‘में एक स्त्री के अपने स्व की खोज में उसके यौन अस्तित्व का क्या महत्व है। इसके लिए रेखायें और उसकी परतों के माध्यम से एक स्त्री के बाहरी व अंदरूनी विस्थापन की ओर दृष्टि डाली गई है।

भारत की अतीता तवारे की कृति का शीर्षक है ‘ इट्स देयर होमलैंड टू ‘। इसमें इचिंग के साथ इम्बाॅस तकनीक का उपयोग किया गया है। मेंढ़क व मनुष्य की आकृति के माध्यम से अपने घर के आसपास के जानवरों के बचे रहने के मसले को भावात्मक स्तपर पर उठाने की कोशिश की गयी है। इंफ्रास्ट्रकचर डेवलपमेंट के नाम पर तथा टूरिस्ट स्पाॅट के नाम पर कैसे जानवरों के अस्तित्व को दांव पर लगा दिया गया है, इसे अभिव्यक्त किया गया है। पृष्ठभूमि को इम्बाॅस्ड कर इचिंग से मेढ़क की काया में मनुष्य की आकृति को बनाया गया है।

डिम्पल शाह ने वुडकट में ‘नो मैन्स लैंड’ नामक कृति में एक लड़की के सर पर नाव, घर को चित्रित किया है। इसमें सबकुछ गतिशील सा है। हर व्यक्ति अपने मन में घर की छवि साथ लिये चलता है। वैसे लोग जो काम की तलाश में भले घर से काफी दूर चले जाते हैं पर शायद ही अपना घर भूल पाते हों। इस बात को चाक्षुष भाषा प्रदान की गई है।

दीपक सिंकर ने इम्बाॅस द्वारा ‘ईनविजिबल बाॅर्डर्स’ बनाया है। अपने बचपन की यादए खेल के मैदान में मित्रों के साथ मस्ती करनाए छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे से झगड़ना यह सब ताउम्र व्यक्ति की स्मृतियों के साथ बना रहता है। कला और सृजन में भी घर की स्मृति काफी दूर तक हमारा पीछा करती है।

न्यूजीलैंड की हमाह किंग के काम का शीर्षक है ‘कियातिया की होमलैंड’ (गार्जियन्स ऑफ होमलैंड ) । प्रिंटमेकिंग की ड्राईप्वाइंट तकनीक से बनी इस कृति में लैपटाॅप से एक निकलते हाथ में झूलती हुई चाबियां हैं। उसके बगल में एक पौधे की टहनी है तथा चार चिड़िया चारों ओर से उस निकलते हाथ और चाबी की ओर सवालिया निगाहों से देख रही है। मानों पूछ रही हैं कि क्या यह देख रहे हो कि यह किधर जा रहा है । यह चित्र इस बात की ओर इशारा करती है कि आभासी यथार्थ ने असली यथार्थ को पीछे छोड़ दिया है। गहरे अर्थ लिये यह चित्र प्रकृति व मनुष्य के आपसी संबंधों की पड़ताल करती है। पृथ्वी को कैसे रहने लायक बनाया जाए इस ओर इशारा करती है।

भारत के दुर्गादास गड़ई की एचिंग की एक्वाटिंट तकनीक से बनी कृति का शीर्षक दिया गया है ‘गिफ्ट फ्राॅम गाॅड’। गहरे स्याह रंग से बनी यह कृति तीव्र भावनाएं जगाने वाली है। इसमें एक व्यक्ति मानों चिता पर आधे मुंह चिता पर लेटा हुआ है और कई आकृतियां उसे निहार रही हैं। जटिल संरचना वाली इस चित्र में अंदर के गहरे अभाव, त्रासदी तथा घर की स्मृतियां एक साथ आती प्रतीत होती है।

ऑस्ट्रेलिया की जूलिया वेकफील्ड ने एक लैंडस्केप इचिंग माध्यम से रचा है। बड़ा पेड जिसकी डलियां फैली हैं तथा दूर तक फैला पीला विस्तार मन में यादेंए पीछे छूट जाने का अहसास प्रकट करता है। लेखिका ने ऑस्ट्रेलिया , जहां उसके पूर्वज रहा करते थे, इंग्लैंड, जहां वह खुद रहा करती है और कनाडा, जहां उसके बच्चे रहना पसंद करते हैं, के बीच की आवाजाही से पैदा विस्थापन और उसके भावनात्मक प्रभाव को दर्ज किया है। तीन जगहों पर घर और उनके बीच आते-जाते रहने की भागदौड़ के मध्य शांति की खोज करती हुई है यह कृति।

भारत के इंद्रजीत प्रसाद ने सेरीग्राॅफ और इम्बाॅस पद्धति बनी कृति का नाम है ‘बैलेंसिंग एक्ट’। इस चित्र में हवा में पेड़ की डाली के दो टुकड़े हो गए हैं और एक व्यक्ति पेड़ की मोटी टहनी पर टिके पटरे पर अपना संतुलन बिठाने की कोशिश कर रहा है। यह कृति भाषा व भूगोल के रिश्ते की तलाश करता प्रतीत होता है। कटते जाते पेड़, पर्यावरण का विनाश और इसके बीच जीवन की जद्दोजहद को यह कृति पकड़ती है।

पोलैंड की जुस्त्यिना द्ज्याबासजेवास्का का काम प्रभावी है। इसमें कई चीजें एक साथ उपस्थित की गई हैं। पुराने चित्रकार की प्रसिद्ध कृति का आधार बनाकर पोलैंड की वास्तविकता को चित्रित करने का प्रयास किया गया है। एक वृद्ध सा व्यक्ति निराश बैठा हैए एक बच्चा एक हाथ से कबाब खा रहा हैए दूसरी ओर फासीवादी झंडा मौजूद है। जमीन पर एक बकरी सोई सी है। यह कृति फासिस्ट खतरे के साथ जादुई किस्म के यथार्थवाद से परिचित कराती है।

जापान के कोआरू होगाशी ने अपनी काम का शीर्षक ‘ मोमेंट’ दिया है। इंटाग्लियो और ड्राइंग से किये इस काम में हृदय का एक एक्सरे दर्शाया गया है जो अपनी गति से धड़कता रहता है। रंगो का संयोजन इस प्रकार किया गया है कि देखने वाले को अपने भीतर एक टूटन का भाव आता है।

अमेरिका के केल्से लेविंग्सटन ने लीनोकट और सर्फेस प्रिंटिंग पद्धति से ‘ ‘ग्लेडवाटर ‘ नामक कृति बनाया है। इसमें अपनी बचपन की स्मृति को चित्रित किया गया है जिसमें हाथों से ब्लैकबेरी तोड़ना, बगल में बिल्ली का बच्चा साथ में है। ब्लैकबेरी, बिल्ली, हाथ, पत्ते और फूल को बनाने में रंग संयोजन बेहद सृजनात्मक ढ़ंग से किया गया है। चित्र देखने वाले को बीते हुए दिनों में ले जाती है। इस वजह से आकर्षित करती है।

‘ वर्थ ऑफ ह्यूमन जर्नी ‘ भारत के कृष्णा रेड्डी की एचिंग माध्यम से बनी कलाकृति का शीर्षक है। इसमें भी कृष्णा रेड्डी ने तेलंगाना के बचपन की व्यतीत यादों को इस छापाचित्र के माध्यम से समेटा गया है। पुराने घर, शहर, पुल और उसकी बनावट को शिद्दत से याद किया गया । इस चित्र का रंग ऐसा है जो हमें सहज ही मेमारी लेन में लेकर चला जाता है।

भारत की नंदिनी पांतवाने की एचिंग विधि से बनी कृति है ‘ पीस ऑफ माइंड ‘ । इसमें घर में बैठी स्त्री आराम और आनंद की मुद्रा में दिखती है। अपना घर आपको खुशी प्रदान करता है। भविष्य की सुंदर कल्पना की जगह भी घर का शांत वातावरण हुआ करता है।

भारत की ही पल्लवी मूल ने ‘ होमलैंड ‘ में बैलून की तरह उड़ते मकानों का दर्शाया है। किस कदर शहरों को कंक्रीट के जंगल में तब्दील कर दिया है इसे सामने लाया गया है।

पुर्तगाल की पाउला बासिल की कृति फोटोपाॅलिमर ग्रावुएर तकनीक से घोंसला बनाया है। इसका पुर्तगाली नाम ‘निन्हों ‘ है। घोसंला, सुरक्षा, गर्माहट आदि का प्रतीक है। बच्चे का नौ महीने गर्भ में रहना सुरक्षा की मांग करता है। इसके लिए घोंसले या घर की जरूरत है। यहीं हमें शांति व सुकून प्रदान करता है। यह कृति कुछ इसी किस्म के भावों को प्रकट करती है।

पांडुरंग देवघारे इचिंग से दो तीन रंगों के मिश्रण से बनाते हैं ‘ड्रिफ्ट’। इसमें कुछ ऐसे बिम्बों का उपयोग किया गया है जिसमें अपनी जड़ों ने उजड़ने का दंश अभिव्यक्त होता है। ग्रामीण इलाकों से शहर की ओर जाना कई बार सिर्फ अपने स्वप्नों को पूरा करने के लिए ही नहीं अपितु मजबूरी भी हो सकती है। विस्थापन और पलायन के दर्द को समेटने की कोशिश है इस काम में। रंगों का सतर्क उपयोग इस तीव्रता को और बढ़ाता है।

मिलिंद अटकले ने अपनी कृति ‘ प्लेस ‘ में अनाथ और बेघर बच्चो के रहने के प्रश्न को उठाया है। इचिंग में बनी इस कृति में एक बच्चा लाचार अवस्था में अपने हाथ फैलाए हुए है। बच्चा उपर की ओर यानी दाता की ओर निगाह रखे हुए है। बच्चे के हाथ का अनुपात अपेक्षाकृत बड़ा है। यह चीज इस चित्र को विशिष्ट बना देती है जिसमें भीख मांगते बेघर बच्चे की त्रासदी उभर कर आती है।

जापान के मोतोको चिकामात्सु मिक्स मीडियम और इचिंग से ‘ ए स्पेशल बाॅक्स’ बनाते हैं। इस कृति में एक ऐसा स्पेस बनाया गया है जिसमें जापान में विभिन्न मौसमों के अनुसार हवा बदलती है। हवा व्यक्ति के सृजनात्मकता पर भी असर डालता है। कई किस्म के ज्यामितिय आकारों और नारंगी, पीले तथा अन्य रंगों माध्यम से इस भावना को प्रकट किया गया है।

राजेश अंबाल्कर की शीर्षकहीन कृति भी एचिंग से बनायी गई है। जटिल बुनावट वाली इस कृति में व्यक्ति की पहचान से जुड़े मसले को उठाया गया है जैसे स्थान बदलने से पहचान नहीं बदलती है।

शिरीष मितबावकर ने वुडकट में ‘ चाइल्डहुड’ नाम से अपना प्रिंट बनाया है। कोंकण क्षेत्र के अपने बचपन के अनुभवों, जिसमें समुद्र का विशाल किनारा, आम के पेड़, मुख्य भोजन मछली यह सब चित्रकार के दिल के करीब की चीजें हैं। लेकिन रोजी-रोटी की तलाश उसे मुंबई जैसे महानगर में जाने को विवश करती है। वुडकट में इन सबको पकड़ने की कोशिश की गई है। मछली हल्के ब्लू रंग की है बाकी चीजें काले रंग से पेंटेड है।

अमेरिका की स्तेफानी कारपेंटर ने लेटर प्रेस तकनीक से ‘वन बाई वन’ नामक प्रिंट निकाला है। जिस प्रकार मकान बनाने के लिए ईंट की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मानवता की रक्षा के लिए सबको एक परिवार की तरह रहना चाहिए। इस बात को प्रकट करने के लिए लेटर प्रेस तकनीक का उपयोग कर ‘वन बाई वन’ बना है।

मेक्सिको के छापा कलाकार सिल्विया गाओना ने ‘डोमिनियन मोर्तुओरम ‘नाम से प्रिंट इचिंग पद्धति से निकाला है। मेक्सिको की अपनी परंपरा और संस्कृति से प्रेरणा लेकर लाॅर्ड ऑफ मिक्टलान को बनाया है जिसका अर्थ होता है मृतकों के घर के में । मेक्सिको के लोगों को प्रतिदिन भय व असुरक्षा के माहौल में रहना होता है। काले रंग से चित्रित यह चित्र डरावना है। एक महिला मानव खोपड़ी और सांप को अपने माथे पर रखा हुआ है, शरीर से मकड़ी, जाले तथा विचित्र किस्म के जीव जंतु चिपके हैं। एक तत्व मृत व्यक्ति तो दूसरी ओर घायल हृदय है। लेकिन इन सब नकारात्मक व डरावने तत्वों को संतुलित करने वाली चीज है सूरज जो इन सबके मध्य से फीनिक्स की तरह अस्तित्व में आती नजर आती है।

अमरीकी कलाकार टेरी स्ट्रेटसर ने इचिंग द्वारा ‘नेटिव अमेरिकन्स’ बनाया है। इस चित्र में अमेरिका के मूल निवासियों को याद किया गया है। तंबुनुमा आकृति और धूसर रंग प्राचीनता का अहसास कराते हैं। दसवीं शताब्दी में इन लोगों के बारे में पता चला। इसके कई शताब्दियों बाद कोलंबस ने अमेरिका की खोज की। इन मूल निवासियों अमेरिकियों में भाषायी, जातीय व सांस्कृतिक तौर पर काफी विविधता है। अमेरिका आज भी 567 किस्म के मूलनिवासियों का ‘होमलैंड’ है।

भारत की सुचेता छागड़े ने वुड इन्ग्रेविंग द्वारा ‘आब्सेशन’ नाम छापाचित्र बनाया है। इस चित्र में भी बचपन मे कृष्णा नदी के किनारे की स्मृति को बेहद शिद्दत से याद किया गया है। नदी का विस्तारए गहरी काली मिट्टी और उसकी खामोशी यह सब उसकी स्मृति में बची है। नदी के बहने वाले इलाके के मानचित्र के बहाने चित्रकार ने अपनी यादों को संजोया है। नदी का मैप चित्रकार और उसकी स्मृति को सामने लाता है। शहर की भागदौड़, विकास के नाम पर अंधाधुंध तोड़फोड़ ने नदी की पुरानी धारा को बादलने व मुड़ने पर मजबूर कर दिया है। जबकि कलाकार की स्मृति नदी की पुरानी पर असली धारा के साथ जुड़ी है। जिसे बचाने की चाक्षुष कोशिश इस प्रिंट में दिखती है।

भारत के ही वीजी वेणुगोपाल ने वुडकट में बनायी कृति का ‘ ईसलेस ‘ नाम दिया है। इस चित्र में दो विडंबनाओं की ओर इशारा किया गया है जिसमें एक ओर अपनी जड़ों से टूटकर मेट्रोपाॅलिटन केंद्रों में बसने के दौरान दो अलग-अलग अपिरिचित अस्तित्व से जूझना पड़ता है। एक में स्व की तलाश जबकि दूसरी ओर पुराने घर की स्मृति। एक में शहर में कैद निजी अस्तित्व वहीं दूसरी ओर पुराने घर और उसके माहौल का चित्रण किया गया है। घर का चित्र प्रेक्षक के अंदर उदासी का भाव लाता है। विस्थापन से पैदा होने अलगाव को चित्र पकड़ता है। स्याह सफेद वैसे भी स्मृतियों का अभिव्यक्त करने का प्रचलित तरीका है।

फ्रांस की वर्षा बापतिस्ते की कृति का शीर्षक दिया गया है ‘एंसेस्ट्रल फूटप्रिंट’। इसे इचिंग और एक्वाटिंट से बनाया गया है। मौरीशस के भारतीय प्रवासियों की कथा बेहद संघर्ष से भरी है। काले व सफेद रंग के उपयोग से तीन वैसी स्त्रियों को लाया गया है जिन्हें देखने से तीन पीढ़ियों का अहसास होता है। बिना अपनी सांस्कृतिक पहचान खोये हुए अपनी मुक्ति का इनका संघर्ष महाकाव्यात्मक श्रेणी में माना जाएगा। इस संघर्ष में आंसू, रक्त, पसीना सब मिलाजुला है। इस प्रिंट ने मुक्ति के इस आख्यान को से पकड़ा है। अपने पुरखों को याद करना दरअसल अपने अपनी आत्मा में अतीत के तकलीफदेह पन्ने पलटकर ढ़ूढ़ने जैसा है।

भारत के योगेश रामकृष्ण द्वारा इचिंग पद्धति से ‘स्पोकेन रियलिटी’ नामक प्रिंट तैयार किया है। इस कृति में विषय के प्रति अप्रोच थोड़ा अलग है। शहरों के बने मकान और घर में फर्क होता है। मकान को उपभोक्ता सामग्रियों से बनाया जा सकता है पर घर बनता है भावनाओं से, एक दूसरे के प्रति लगाव, प्यार और सम्मान से। इस छापा चित्र में एक सर्प किस प्रकार मकान को डंसने की केाशिश में लगा है इसे विजुअली पकड़ने की केाशिश की गई है। बड़ी-बड़ी बहुमंजिला इमारतें और मकान के अंदर की भोगवादी भूख हमें हमारी स्मृतियों से महरूम कर देती है।

भारत की विशाखा आप्टे ने अचिंग विधि से घर के अंदर की दैनिंदिन वस्तुओं, जैसे बर्तन, बोतल, थाली, कड़ाही आदि को चित्रित किया है। हम भले ही दूसरी जगहों पर जाएं पर ये आवश्यक वस्तुयें हमारे निजी संसार का हिस्सा रहा करती हैं। इनके बगैर हमारा काम नहीं चल सकता। इनसे लगाव एक ऐसी चीज है जो ताउम्र बनी रहती है। इस प्रिंट के रेखांकन में से उभरती चीजें देखने वाले को भावुक बनाती हैं। चित्र में हल्का काला, पीला व हरे रंग के उपयोग से यह प्रभाव पैदा किया गया है।

जापान के यूको योत्सुजुका के मोनोटाइप और एक्वाटिंट में बनाए प्रिंट का नाम है ‘ टू लैंड ‘। इस प्रिंट में जापान में आए भूकंप और सुनामी के दौरान खो गए अपने घर को याद करती है। हादसे के पूर्व की दुनिया तो वापस नहीं लायी जा सकती पर उसकी स्मृति को सुरक्षित रखा जा सकता है। अमूर्तन में बनी यह कृति रंगों का संयोजन इस अतीत के छूट जाने के भाव को पकड़ने की कोशिश करता है।

जापान के ही एक अन्य प्रिंटमेकर यूकी त्सुबोयामा ने इचिंग व चाइनाकोल के माध्यम से ‘ पाइल्ड पाइन ‘ शीर्षक कृति निर्मित किया है। हम सबों के लिए घर एक साथ एक नाॅस्टल्जिया जुड़ा रहता है। जापानी संस्कृति व परंपरा के अनुकूल शिखर या कलगी को चित्रित किया है। जापान की पारंपरिक कलगी से चित्रकार मोहाविष्ट हैं। चित्रकार जापान की सुंदरता और शांति को अगली पीढ़ी तब बचाकर रखना चाहती है। काले, नीले व क्रीम कलर की सहायता से कलगी को चित्रित करती है। इस प्रिंट में जापानी छवि दृष्टिगोचर होती है।

2017 की ‘होमलैंड’ श्रृंखला में कई देशों व महादेशों के प्रिंटमेकर्स ने हिस्सा लिया। अपना घर किसे नहीं प्यारा लगता है। भारतीय प्रिंटमेकर्स को देखने पर एक बात बहुतों में समान नजर आती है कि गांव से शहर का विस्थापनए पूंजीवादी विकास की अंधाधुंघ दौड़ में छूटे घर की दुःख भरी स्मृति परेशान करती है। अधिकांश कलाकारों ने इसे चाक्षुष रूप से अभिव्यक्त किया है। लैटिन अमेरिका के प्रिंटमेकर्स अपने वर्तमान को तबसे समझने की कोशिश करते हैं जब यूरोपियन आक्रांताओं ने उनका सब कुछ तबाह कर दिया। वे अपनी पुरानी जड़ों को ढूंढ़ने अधिक दिलचस्पी रखते प्रतीत होते हैं। विकसित देशों के छापाकलाकारों के सरोकार विकासशील देशों के मुकाबले भिन्न किस्म के दिखते हैं। अधिकांश छापाचित्रकारों ने इचिंग पद्धति का उपयोग किया है। कुछ ने वुडकट भी उपयोग में लाया है। ऐसा प्रतीत होता है कि स्मृति के लिए इचिंग विधि अपेक्षाकृत अधिक माकूल पड़ती है।

‘ होमलैंड ‘ में शामिल प्रिंटमेकर्स दरअसल अपने घर की अपनी स्मृति के बहाने अपनी मनुष्यता को बचाने का प्रस्ताव करते नजर आए।

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