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गणेश खेतड़ीवाल की एकल छायाचित्र प्रदर्शनी
अनीश अंकुर पटना के कला एवं सांस्कृतिक जगत में अपनी विशेष पहचान रखते हैं। आलेखन डॉट इन के सुधि पाठक इस बात से भलीभांति अवगत हैं, और नियमित तौर पर बिहार की कला गतिविधियों पर उनकी समीक्षात्मक टिप्पणी पढ़ते रहते हैं। क्योंकि उनकी सदैव कोशिश रहती है बिहार से बाहर के कला जगत को बिहार की कला गतिविधियों से रूबरू कराते रहा जाए। इसी कड़ी में प्रस्तुत है पिछले दिनों बिहार म्यूजियम, पटना में आयोजित हुयी ‘ए जर्नी ऑफ गणेश खेतड़ीवाल’ शीर्षक छायाचित्र प्रदर्शनी पर केन्द्रित समीक्षात्मक आलेख …….
पिछले दिनों बिहार म्युजियम,पटना में बिहार के चर्चित व्यवसायी गणेश खेतड़ीवाल के छायाचित्रों की प्रदर्शनी आयोजित की गई । 1 से 22 फरवरी तक आयोजित इस प्रदर्शनी में गणेश खेतड़ीवाल के चुनिंदा 95 छायाचित्रों को प्रदर्शित किया गया था। खेतड़ीवाल शौकिया फोटोग्राफर हैं। इन छायाचित्रों को गणेश खेतड़ीवाल ने अपने विश्वभ्रमण के दौरान खींचा है। इन्हीं वजहों से इस प्रदर्शनी का नाम दिया गया है ‘ए जर्नी ऑफ गणेश खेतड़ीवाल’। सभी तस्वीरों को उनके आकार के अनुपात में एक खूबसूरत सफेद फ्रेम में रखा गया है। बिहार म्युजियम में अपने ढंग की यह अलग प्रदर्शनी थी जिसे देखने समाज के हर क्षेत्र के लोग इकट्ठा हुए।
मध्य यूरोप के देश स्विटजरलैंड से लेकर भारत मे उत्तरपूर्व के राज्य सिक्कम तक की छवियां ‘ ए जर्नी ऑफ गणेश खेतड़ीवाल ’ का हिस्सा थी। गणेश खेतड़ीवाल को घूमने का शौक रहा है। इस दौरान वे अपने साथ कैमरा भी रखा करते हैं। तस्वीरें इसी कैमरे से ली जाती रही हैं। अलबत्ता वे अपने कैमरे को हमेशा बदलते रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान तो कैमरे की दुनिया में क्रांति सी आ गई है। अब माबाईल फोन में कैमरे की सुविधा फोटोग्राफी को आमलोगों तक सुलभ बना दिया है। लेकिन गणेश खेतड़ीवाल काफी पहले से कैमरे का उपयोग करते रहे हैं। कैमरे की बदलती तकनीक के अनुसार वे अपने कैमरे भी बदलते रहे हैं। ‘ए जर्नी ऑफ गणेश खेतड़ीवाल’ में यदि छायाचित्रों को लिए जाने का वर्ष लिखा होता तो छायाकार की यात्रा समझने में प्रेक्षक को सहूलियत होती।
यह प्रदर्शनी एक सैलानी की निगाह से दुनिया को देखने की कोशिश का परिणाम है। गणेश खेतड़ीवाल की तस्वीरों में अधिकांशत: पहाड़, उसकी विशालता, सूर्य की रौशनी में पहाड़ का निखरता सौंदर्य, हरे-भरे घासों वाले खुले मैदान, सूर्याेदय, सूर्यास्त, जलप्रपात, समुद्र आदि प्रमुखता से उभर कर आते हैं। ऐतिहासिक स्थल, घार्मिक आयोजन, उत्सव यह सब गणेश खेतड़ीवाल के दृश्य संसार का हिस्सा हैं।
खेतड़ीवाल को लाॅंग शाॅट पसंद है। वे दूर से तस्वीरें लेना पसंद करते हैं। संभवतः पर्यटक के लिए यह स्वाभाविक भी है। क्लोजअप तस्वीरें इस प्रदर्शनी में काफी कम हैं। एक दूरी सी बनी रहती है। जिन स्थलों के फोटो उन्होंने उतारे हैं उसका पूरा वैभव, ऐश्वर्य उन्होंने पकड़ने की कोशिश की है। हर स्थल की खूबसूरती, उसका सौंदर्य गणेश खेतड़ीवाल के यहां उभर कर आता है।
गणेश खेतड़ीवाल की यह प्रदर्शनी हमें संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस , स्विटजरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात सरीखे विकसित देशों का भ्रमण कराता है साथ ही भारत में मुंबई, दिल्ली और बैंग्लोर जैसे शहरों से भी परिचित कराता है। बिहार में पटना, गया के अतिरिक्त भागलुपर के भी एक-दो दृश्य शामिल हैं।
ऐतिहासिक महल, झील, बादल, पहाड़ और घास के फैले मैदान इनके पसंदीदा स्थल प्रतीत होते हैं। गणेश खेतड़ीवाल वैसे हैं तो शौकिया फोटाग्रफर पर बारीकियां पकड़ने में माहिर नजर आते हैं। विशेषकर प्रकाश के इतने शेड्स उनकी तस्वीरों में है कि उन्हें देख दर्शक चकित सा रह जा सकता है।
स्विटजरलैंड के ‘माउंट टिटलिस’, ‘माउंट एइगर’ , ‘माउंट जुंगफ्राउजोच’ , ओबेरडॉर्फ और एंगेबर्ग विलेज हो या सिक्किम के पहाड़ों पर लिये गए ‘ फिंगर व्यू ऑफ हिल्स’, ‘बुद्ध पार्क रवांग्ला’, तथा कंचनजंगा के पर्वतशिखरों पर सूर्य की रौशनी के अलग-अलग शेड्स, पीला और नीला शेड्स बरबस अपनी ओर खींचता है । कंचनजंगा का ‘गोल्डन व्यू ’ और ‘सिल्वर व्यू ’काफी खूबसूरत दिखता है।
ऐसे ही स्विटजरलैंड के पर्वत शिखरों के फोटो में इसे देखा जा सकता है। अमेरिका का चर्चित नियाग्रा फॉल्स भी इस प्रदर्शनी में शामिल है। ऐसा प्रतीत होता है कि फोटोग्राफर इन दृश्यों से अभिभूत सा है। गणेश खेतड़ीवाल के यहां नीला रंग उनकी तस्वीरों में बार- बार आता है। नीला आसमान उनके अधिकांश चित्रों में दिखता रहता है। इन तस्वीरों से जीवन के प्रति उम्मीद और उमंग का अहसास होता है।
कहा जाता है कि जिस व्यक्ति के बहुत से दोस्त होते हैं जिन्हें लगातार घूमते रहने की इच्छा होती है, जो हमेशा विदेश यात्रा करते रहते हैं तथा जो लोग विदेशी भूगोल और संस्कृति का अध्ययन करते हैं या यात्रा-वर्णन पढ़ने के शौकीन होते हैं, उनका पसंदीदा रंग नीला होता है।
गणेश खेतड़ीवाल को किसी शहर के बाहरी इलाके (आउटस्कर्ट) में विशेष दिलचस्पी है। देहरादुन, पटना, पेरिस, बेंगलुरू के आउटस्कर्ट्स इस प्रदर्शनी में शामिल हैं। आउटस्कर्ट्स हमेशा टाॅप व्यू से लिये गए हैं। इससे शहर का विस्तार और फैलाव पकड़ में आता है। पटना के ‘आउटस्कर्ट’ की भी तस्वीर इसमें शामिल है।
ठीक इसी प्रकार सूर्यास्त में इनकी रूचि है। श्रीलंका का आहुंगला समुद्र किनारे का सूर्यास्त, दार्जिलिंग का सूर्यास्त, या मुंबई के जुहु बीच के बादलों से घिरे डूबते सूरज को देखें या फिर दिल्ली के इंडिया गेट के पास का अस्त होता सूरज फोटोग्राफर गणेश खेतड़ीवाल ने अपने प्रवीण हाथों से उसे कैमरे में कैद किया है।
गणेश खेतड़ीवाल ने ऐतिहासिक स्थलों के जो चित्र खींचे हैं उसमें वे उसके पुराने वैभव को सामने लाने की कोशिश करते हैं। अधिकांश ऐतिहासिक स्थल भूरे या हलके कत्थई में दिखाई पड़ते हैं। यदि भवन का चित्र ले रहे हों तो फोटोग्राफर ने थोड़ा नीचे से उसकी उंचाई, उसकी विशालता को पकड़ने का प्रयास किया है। जोधपुर और उदयपुर के महलों के उनके चित्रों को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। दिल्ली के ‘उग्रसेन की बाओली’, अहमदाबाद का ‘अदालज स्टेप वेल’, देहरादून का ‘कॉरीडोर’ शीर्षक वाले चित्र पर बरबस ध्यान चला जाता है।
पेरिस का एफिल टावर, पैलेस ऑफ वर्सिलिस का चैपल हाॅल, हाॅल ऑफ मिरर, राॅयल शैटो, लंदन का बर्किंघम पैलेस, वाशिंगटन के ‘कैपिटल हिल’ के दृश्य देखना एक अनुभव से गुजरना लगता है। इन विश्वप्रसिद्ध स्थलों की विशेषता से अवगत कराती है यह प्रदर्शनी। गणेश खेतड़ीवाल अपने कैमरे से रौशनी और छाया का बखूबी उपयोग करते हैं। रात्रि पहर में रौशनी के भिन्न-भिन्न आयाम को बेहद सधे अंदाज में पकड़ते हैं। ऐतिहासिक स्थलों की खूबसूरती अंधेरे में पीले प्रकाश से किस कदर चमक उठता है इसे यह प्रदर्शनी दिखाती है।
पटना शहर की भी अच्छी खासी तस्वीरें ‘ए जर्नी ऑफ गणेश खेतड़ीवाल’ का हिस्सा है। पटना शहर गणेश खेतड़ीवाल के दृष्टिकोण से देखने पर और अधिक सुंदर दिखता है। अपने ही शहर के जाने-पहचाने स्थलों को ऐसे एंगेल से पकड़ा है जो हमारी नजरों से ओझल सा रहा है। पटना के कुछ दृश्य पेरिस की छवियों से होड़ लेते प्रतीत होते हैं । गणेश खेतड़ीवाल ने सकारात्मकता पहलू को सामने लाने पर जोर देते हैं।
पटना शहर में उन्होंने दशहरा, गाॅंधी मैदान में विजयादशमी के मौके रावणवध की भीड़ को कैमरे से खींचा है। ऐसे ही होलिका दहन की भी एक छवि है। लेकिन पटना शहर में बोटेनिकल गोर्डेन की तस्वीरें सबसे प्रभावी बन पड़ी हैं। पटना के चिड़ियाखाने के प्राकृतिक सौंदर्य को जिस दक्षता से गणेश खेतड़ीवाल ने कैमरे में कैद किया है वह काबिलेतारीफ है। गणेश खेतड़ीवाल ने पटना चिड़ियाखाना को थोड़ा नये कोण से देखने का प्रयास किया है। चिड़ियाखाना के उनके चित्रों में एक ताजगी दिखती है, कुछ नया देखने का अहसास होता है।
एक तस्वीर में रेलवे लाइन पेड़ों के झुरमुट से होते हुए अनजाने रास्तों पर जाती प्रतीत होती है। यह तस्वीर प्रेक्षक के अंदर पुरानी स्मृतियों को कुरेदती प्रतीत होती है। रेलवे लाइन मानो अनजाने रास्तों की ओर जाती है। ट्रैक के दोनों ओर घने पेड़ हैं। देखने वाले को घने जंगलों के बीच से बिछाई गयी रेलवे लाइन हमें सुदूर अतीत में ले जाती प्रतीत होती है।
पटना की बनी छवि के उलट हमें एक दूसरे पटना को देखने का अनुभव होता है। पटना में छठ की जो छवियां गणेश उतारी गयी हैं वे प्रचलित छवियां हैं जो हमारे जेहन में बसी हुई है। भागलुपर की एक बड़ी अच्छी तस्वीर उतारी है जिसका शीर्षक है ‘ लाइफ लाइन ऑफ प्लेनेट अर्थ ’। इस तस्वीर में डूबते सूर्य की लालिमा, नीले आसमान और सफेद बादलों के बीच फैलती है। हरे घास के विस्तार के मध्य एक पेड़ अकेला खड़ा है और एक रास्ता क्षितिज की ओर जाता दिखता है। यह तस्वीर दर्शक को ठहरने पर विवश कर देती है।
गणेश खेतड़ीवाल की तस्वीरों में, सैलानी की निगाह, पर्यटक का दृष्टिकोण प्रमुखता से उभर कर आती है। उनके द्वारा लिए गए फोटोग्राफ अमूमन एक दूरी से खींचे जाते हैं। वे कहीं भी , इन्वॉल्व नहीं होते । एक दूरी सी बनी रहती है। गणेश खेतड़ीवाल के यहां ऑब्जेक्ट्स प्रमुख हैं, जैसे स्थान, महल, स्थल, दृश्य आदि। लोग या मनुष्य का चेहरा अपेक्षाकृत कम आता है। यदि लोग आते भी हैं तो भीड़ के रूप जिसका कोई चेहरा नहीं होता। वह भीड़ चाहे छठ में सूर्य को अर्घ्य दे रही हो या विजयादशमी के मौक पर रावण का वध देखने जुटी हो।
इस प्रदर्शनी में एक तस्वीर अलग से ध्यान आकृष्ट करती है। इसका शीर्षक है ‘श्री गणेश विसर्जन, मुंबई’। मुंबई में, गणेश की पूजा जिसे गणपति की पूजा कहा जाता है, बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र के इतिहास में उसका एक विशेष स्थान भी रहा है। इस तस्वीर में संभवतः समुद्र किनारे गणेश की एक प्रतिमा के आसपास चार बच्चे खड़े हैं। सभी बच्चों की संलग्नता उस गणेश की प्रतिमा से है। नन्हें बच्चे और उनकी ही लंबाई की प्रतिमा दर्शक में कौतुक पैदा करता है। पूजा की चीज बच्चों के खेलने की चीज में परिणत हो जाती है। यह तस्वीर इस प्रदर्शनी की एकदम अलग किस्म है। फोटोग्राफर ने जिस क्षण को पकड़ा है वह अपने समय का अतिक्रमण करती प्रतीत होती है। देर तक उसकी छवि मन में देखने वाले के मन में बनी रहती है।
प्रदर्शनी में कुछ ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें भी हैं जैसे गया के महाबोधि मंदिर की तस्वीर, वाराणसी के गंगा आरती तथा रात्रि वेला में दिल्ली के इंडिया गेट की छवि देखने लायक है। ऐतिहासिक स्थल की छवियां धार्मिक उत्सवों की तुलना में अधिक जीवंत बन पड़ी है।
गणेश खेतड़ीवाल के तस्वीरों की दुनिया एक शांत, स्थिर एवं ठहरी हुई दुनिया को सामने लाती है। फोटोग्राफर मानो शोर-गुल से भरी दुनिया से बाहर जाकर एक सुकुन भरी जिंदगी के ख्वाब देख रहा हो। इन तस्वीरों को देखते हुए एक प्रेक्षक कुछ इन्हीं भावनाओं से गुजरता है।